अगर कोई हम से पूछे कि तुम्हें कौन सा मौसम पसंद है? तो मेरा जबाब होगा -बरसात.बचपन के दिनों को याद करती हूँ तो अब न वो बारिश रही न ही इस मौसम में वो मज़ा रहा.दिल्ली में अब बारिश बहुत कम होती है.पहले बारिश की ऐसी झड़ी लगाती थी कि हफ्तों तक रुकने का नाम नही लेती थी.पूरे घर में सीलन की बू भर जाती थी.तब वाशिंग मशीन तो था नही लिहाजा बरसात शुरू होते ही घर के बरामदे में गीले कपडे सुखाने के लिए रसियाँ बाँध दी जातीं थीं .सच पूछो तो आज भी कभी किसी तंग गली से गुजरना होता है तो मेरे साथ चल रहे लोग अपनी नाक पर रुमाल रख लेते है पर वो सीलन भरी गंध मुझे खींच कर अपने बचपन के ओर ले जाती है.जिसे आजकल लोग नोस्टालजिया कहते हैं.आजकल यह शब्द ख़ूब चल रहा है.हम सब अपनी जमीन से कटते जा रहें है तो यह शब्द हमें बहुत प्यारा लगने लगा है.सभी बच्चों की तरह मुझे भी बारिश में भीगना अच्छा लगता था.इस मौसम में एक दिन भी स्कूल मिस नही करती थी. बस स्टाप घर के पास था इसलिये रोका नही जाता था.मुझे याद है कि कई बार हम स्कूल पहुचते तो मालूम होता कि रेनी डे होने की वजह से आज स्कूल
बंद है। एक रोज़ ऐसे ही मौसम में स्कूल गई तो
टीचर ने मुझ से पूछा कि इतनी बारिश में स्कूल क्यों आई? तो हमने कहा कि स्कूल खुल्ला था तो आना ज़रूरी था.यह सुन कर हमारी टीचर को हंसी आ गई .
जाने कितनी ही ऐसी छोटी-छोटी बातें हमें अचानक नोस्टालजिक कर देती है।
नोट : हम कोई लेखिका या साहित्कर नही है फिर भी पढने -लिखने में कुछ रूचि है इसलिय यह छोटी सी कोशिश है.
Tuesday, July 17, 2007
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1 comment:
अरे तानिवी जी!
हफ्ता भर बरसाते होता रहा तो ऑफिस कैसे जाया जाएगा? ई भी तो सोचिए.
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